"राहुल गाँधी" ने गवायाँ एक सुनहरा मौका-Rahul Gandhi Meeting With PM Narendra Modi,

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राजनीति की दुनिया में 'पप्पू' के नाम का दंश झेल रहे राहुल गाँधी ने अपने ऊपर लगे इस टैग को हटाने के लिए तथा अपनी राजनीतिक छवि को बदलने के लिये हर वो काम करने को तैयार हैं, जो उन्होंने आज तक नहीं किया. यहाँ तक  कि राहुल गाँधी ने पहले कि अपेक्षा अपने काम करने का तरीका भी बदला है. आपको याद होगा पिछले साल 2015 में राहुल गांधी 56 दिनों के लिए अचानक राजनीति से दूर हो गए थे. और तमाम राजनीतिक पार्टियों सहित आम जनता भी यह जानने के लिए उत्सुक थी कि राहुल अचानक कहाँ चलें गएँ हैं. हालाँकि इससे पहले भी वो घूमने -फिरने और छुट्टियां मनाने जाया करते थे लेकिन इस बार जिस तरह से इसको राज रखा जा रहा था कि मुद्दा बनाना लाज़मी था. विपक्षी पार्टियों ने कहा कि राहुल अपने राजनीतिक सफर से  मायूस हो चुके हैं. वहीँ कांग्रेस पार्टी के लोग इस बात से इंकार करते हुए लगातार कह रहे थे कि  राहुल गाँधी 'चिंतन ब्रेक' पर गए हैं.


और फिर जब राहुल की वापसी हुयी तो उनके तेवर काफी बदले हुए थे. और उनका ये रूप 19 अप्रैल, 2015 को किसान खेत मजदूर रैली में देखने को मिला. राहुल गाँधी ने काफी आक्रामक तरीके से रैली को संबोधित किया. और यहीं से किसानों को रही समस्याओं को मुद्दा बना के राजनीति में पुनः वापसी कि. गौरतलब है कि इसी साल सितंबर में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में  धुआंधार रैलियां की, किसानों को प्रभावित करने के लिए किसान यात्रा की . लगभग एक महीने के  अपने इस कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश के 48 जिलों में 26 खाट सभा, 26 रोड शो और लगभग 700 स्थानों पर कार्यकर्ताओं के माध्यम से किसानों की समस्याएं उठायी थीं. राहुल गांधी की इस किसान यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना और कार्यकर्ताओं में भी उत्साह बढ़ा. इसी रैली में बढे आत्मविश्वास का नतीजा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी कार्यक्रम का भी राहुल गाँधी ने जम कर विरोध किया और इसे किसान विरोधी बताया. और ये पूरी तरह से साबित करने की कोशिश किया की मोदी सरकार किसानों के हित में काम नहीं कर रही हैं.

 कांग्रेस पार्टी ने ये साफ़ तौर पर सन्देश देने की कोशिस किया कि वह गरीबों के साथ खड़ी है और लागातार ये दावा करती रही कि  नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर इसी तबके पर पड़ा है. इसी साल संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस पार्टी ने इस मौके को खूब भुनाया और विपक्ष को एकजुट करने में कायमाब रही. सबको ऐसा लग रहा था कांग्रेस एक बार फिर विपक्ष कि भूमिका को निभा रही है, और यहाँ तक कि दूसरी पार्टियों के नेताओं के साथ भी कांग्रेस ने अच्छा तालमेल दिखया और सत्ता पक्ष को घेरने में सफल भी लग रही थी. इसमें राहुल गाँधी काफी एक्टिव दिखे और उन्होंने ने तो ये भी ऐलान कर डाला कि उनके पास ऐसा सबूत है जिससे प्रधानमंत्री के निजी भ्रष्टाचार का खुलासा हो जायेगा. और वे उसकी जानकारी सदन में रखना चाहते हैं. भले ही बीजेपी वाले इसे मजाक बता रहे थे लेकिन राहुल ने इस बयान से माहौल बना दिया था. तभी अप्रत्याशित तरीके से राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलते हैं और उन्हें किसानों के मुद्दे पर एक ज्ञापन सौंपते हैं.  बस क्या था सारा हो हल्ला सारा बयान धरा का धरा रह जाता है. 

अब सारी पार्टियों का यही पूछना है कि आखिर राहुल ने अचानक ये फैसला क्यों लिया. आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल का तो साफ -साफ आरोप हैं कि राहुल और पी एम के बीच कोई न कोई समझौता हुआ हैं. क्योंकि राहुल जिस तरीके से प्रधानमंत्री के खिलाफ आग उगल रहे थे. ये बात पचने वाली नहीं हैं. यहाँ सोचने वाली बात ये है कि जिस किसान मुद्दे को लेकर आप इतने हाइलाइट हुए थे क्या वो समस्याएं प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौपने भर से ही समाप्त हो जाएँगी. आपके पास सुनहरा मौका था उत्तर प्रदेश में चुनाव आने वाले हैं और आप को मजबूती से किसानों के हक़ के लिए संसद में आवाज उठाना चाहिए था. आखिर विपक्ष का काम केवल यही रह गया हैं कि किसी भी तरह संसद न चलने पाए, इसको कांग्रेस ने इस बार भी साबित कर दिया. और इसके साथ ये भी कि राहुल गाँधी को अपने 'पप्पू' वाली छवि से बाहर निकलने में अभी वक़्त लगेगा.
-विंध्यवासिनी सिंह 

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